आपने देश के सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं के अभाव की ख़बरें कई बार सुनी होगी. यहां तक कि जिन स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं हैं भी, वहां आपको ऐसा माहौल नहीं मिलेगा कि बच्चे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित हों. और यहीं से शुरू होता है टीना जैन और उनके एनजीओ अभिकल्पना का काम, जिन्होंने बीड़ा उठाया है सरकारी स्कूलों के माहौल को जीवंत और मज़ेदार बनाने का, ताकि बच्चों के स्कूल आने की सिर्फ़ एकमात्र वजह मिड डे मील ही न हो. आइए, जायज़ा लेते हैं इनके काम का.
जब घर के क़रीब दिखी एक दूसरी दुनिया
वाराणसी की टीना जैन इन दिनों मुंबई में एमबीए की पढ़ाई कर रही हैं, लेकिन देश के 14 राज्यों के 16 सरकारी स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई की ओर रुझान जगाने में कहीं न कहीं इनका योगदान रहा है. सरकारी स्कूलों के नीरस माहौल को रंगों के माध्यम से जीवंत बनाने की प्रेरणा उन्हें ग्रैजुएशन के दौरान मिली, जब वे अपने घर के पास के एक सरकारी स्कूल को बस यूं ही देखने गई थीं. ‘‘चूंकि मैं एक ऐसे परिवार से हूं, जिसने मुझे हमेशा सबसे अच्छी सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश की है. मेरे मन में स्कूलों की एक ख़ुशहाल और मज़ेदार छवि ही थी. लेकिन वाराणसी के उस सरकारी स्कूल में पहुंचते ही मेरा सामना एक दूसरी ही तरह की दुनिया से हुआ. मैं पहली बार किसी सरकारी स्कूल में गई थी. वहां का नीरस और उत्साहहीन माहौल देखकर मैं बहुत दुखी हो गई. मैंने बच्चों से पूछा उन्हें अपने स्कूल में किस चीज़ की कमी सबसे अधिक खलती है, उन्होंने कहा कुर्सी और टेबल. बच्चों की यह बात जायज़ भी थी, क्योंकि ठंडी के उस मौसम में वे ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे.’’ टीना ने अपने दोस्तों की मदद से बच्चों के लिए टेबल कुर्सी का इंतज़ाम करने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया. साथ ही उन्होंने महसूस किया कि स्कूल में ऐसे माहौल का अभाव है, जिससे बच्चे ख़ुद ही स्कूल की तरफ़ खिंचे चले आएं. ‘‘फिर हमने स्कूल को आकर्षक बनाने के लिए वहां की दीवारों पर उनके पाठ्यक्रम से जुड़ी चीज़ों की मज़ेदार ढंग से चित्रकारी करने का निश्चय किया. और उसका परिणाम उत्साहवर्धक रहा.’’
पहल, जिसने उस दुनिया को बदल दिया
टीना यह बात समझ गईं कि ख़ुशहाली का रास्ता स्वस्थ माहौल से आता है. ‘‘दीवारों पर चित्रकारी के अलावा हमने डांस, म्यूज़िक, हस्तकला, पीटी जैसी गतिविधियों के माध्यम से बच्चों की शिक्षा के प्रति रुचि जगानी शुरू की. हमने बच्चों की उपस्थिति में उल्लेखनीय वृद्धि महसूस की.’’ वाराणसी के उस सरकारी स्कूल में पांच लोगों के साथ शुरू हुआ वह अभियान अब 14 राज्यों तक पहुंच चुका है. टीना ने अपने दोस्त मुनीश तिवारी के साथ मिलकर अभिकल्पना की स्थापना की. अब विभिन्न प्रोजेक्ट्स पर वे 50-60 लोगों की टीम के साथ काम कर रहे हैं. टीम के ज़्यादातर सदस्य कॉलेज के वह स्टूडेंट्स होते हैं, जो समाज में कुछ सार्थक बदलाव लाने की इच्छा रखते हैं. अभिकल्पना की टीम स्कूलों के क्लास रूम और गलियारों की दीवारों को बच्चों के पाठ्यक्रम से संबंधित चीज़ों की पेंटिंग बनाती है. ताकि आते-जाते बच्चे उन्हें देखें और उनके दिमाग़ में जाने-अनजाने वह चीज़ें बैठ जाएं. जहां निजी स्कूलों में प्रोजेक्टर होते हैं, वहीं सरकारी स्कूलों की दीवारें अब इन बच्चों के लिए लाइव प्रोजेक्टर बन गई हैं. इसके अभिकल्पना की टीम अलावा न्यूज़ पेपर रीडिंग, डांस, मिट्टी की चीज़ें बनाना, साइंस प्रोजेक्ट और पेंटिंग जैसी पाठ्येतर गतिविधियां भी कराती है. नया साल, क्रिस्मस, दिवाली और दूसरे त्यौहार मनाकर भी ख़ुशियों को स्कूल का रास्ता दिखाया जाता है.
छोटा ख़र्च, बड़ा प्रभाव
हालांकि टीना और उनकी टीम के लिए सबकुछ इतना आसान नहीं रहा है. शुरुआती दिनों में स्कूलों में इन छोटे-छोटे बदलावों के लिए परमिशन मिलना भी एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी. ‘‘शुरुआत में स्कूल प्रशासन को हमें अनुमति देने में झिझक होती थी. पर बातचीत के बाद उन्हें न केवल हमारा आइडिया पसंद आता है, बल्कि स्कूल के शिक्षक भी हमारी मदद करते हैं.’’ अभिकल्पना की टीम अब ज़्यादा से ज़्यादा स्कूलों तक पहुंचना चाहती है. टीना बताती हैं,‘‘मैं इस आइडिया को जितना ज़्यादा हो सके उतने लोगों तक पहुंचाना चाहती हूं. मैं कॉलेज जानेवाले युवाओं से कहना चाहती हूं कि वे अपने शेड्यूल में से इन बच्चों के लिए थोड़ा समय निकालें. आपका छोटा-सा प्रयास बड़ा बदलाव ला सकता है. मेरा मानना है कि बदलाव पैसे से नहीं आता, आपके समय देने और ईमानदार प्रयास करने से आता है. यही कारण है कि हम लोगों से पैसे नहीं लेते. एक स्कूल के मेकओवर के लिए हमें महज़ रु. 1,800 की ज़रूरत होती है. हम जब कोई प्रोजेक्ट कर रहे होते हैं, तब ज़रूरत के अनुसार क्राउड फ़ंडिंग से पैसा जमा कर लेते हैं. हम यह साबित करना चाहते हैं कि पैसे नहीं, आप इन बच्चों के लिए समय दें, क्योंकि हर बच्चे की अपनी ख़ूबी होती है, अपनी क़ाबिलियत होती है, अपनी चाहत होती है. आपको बस उन्हें एक दिशा देनी है. और यह हो सकता है उनके साथ समय बिताकर,’’ कहती हैं टीना, जो ख़ुशहाली फैलाने की इस मुहिम की अगुआई कर रही हैं.